सिसकते समंदरों की सांस, साज़िश ही नज़र आती है,
बंद लिफाफों में ख्वाहिश, गुज़ारिश ही नज़र आती है।।
रोते पन्नों पर बिखरते लफ़्जों की आजमाईश ही नज़र आती है,
उम्र को बंद कर दिया कल्पनाओं की दीवारों वाली दरवाजों में
फिर भी ना जाने क्यों हर पल खुद की फरमाईश ही नज़र आती है।।
ज़माने बाद हौसलाई हिम्मत कुछ पल के लिए डगमगा सा गया
अश्फ़ाक की उम्मीद में अपना ही कंधा ना जाने कहीं खो सा गया।।
सुकून इस बीते सफ़र की है, जो जज़्बातों की कहानी सुना सा गया
बंद मुट्ठी जो खोली है, सारी लकीरों ने आने वाली लम्हों का आइना दिखा सा गया।।
अब तो स्याही वाली शब्दों तले, काली लकीरों का इरादा जरूर निकलेगा,
इस सियाह समुंदर तले कहानियों की बानगी लिए ख़याल-ए-नूर निकलेगा।।
उम्मीद कीजिए अगर उम्मीद नहीं होगी, फिर भी ख़्वाहिश-ए-सुरूर निकलेगा,
ऩए दशक में नई रिश्तों की गिरहें तले भऱी महफिल में हौसला-ए-गुरूर निकलेगा।।
तो बस इंतजार है, उम्मीद है, ख्वाहिश है, बदले मौसम में बदला तराना है,
नज़र में शोखियां, लब पर मोहब्बत, हाथों में हुनर, सामने सारा जमाना है।।
बीतें लम्हों के साथ मुद्दतें बीत गई, अब तो सामने बचा सिर्फ अफ़साना है,
पुराने दरवाजे को बंद कर नई उम्मीद जो जागी है, बस वही गुनगुनाना है।।
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