Writer & Director Rajnish BaBa Mehta |
सारी दुनिया उसकी लिखी हुई एक आखिरी साजिश है
रेंगती राहों पर ये जिस्म मानो उसकी बरसों की ख्व़ाहिश है ।।
अब तो टूटते हैं बदन लगता है मौत से पहले की आजमाईश है,
ख्व़ाबों के खाक तले, माथे पर चांद लिए, ये खुदा की कैसी आराईश है।।
मन सोचता संयोग से वियोग में तराफ कर हर हर्फ़ मिट जाएगी
खुले दरवाजों की सांकल तले बैठा है, जैसे रूह पल में सिमट जाएगी।।
सारी दीवारें सियाह हो गई,अब वो लाल लफ्ज तक का रास्ता यूं ही कट जाएगी
गुजर गया ज़माना गले लगाए हुए,अब तो उसकी साजिशों के तले अंजाम भी भटक जाएगी।।
मन सोचता है, कि फ़ैज अपनी कब्र पर कौन सी मर्सिंया किसे पैगाम कर रहा होगा
भरी जुगनुओँ की भीड़ में फ़िराक़ सुपुर्द-ए-ख़ाक होने पर भी किसकी फिराक में होगा।।
वो इलाहाबाद का अकबर ना जाने किससे कल्त की बात कर आह भी ना भर रहा होगा
साजिशों की साज तले वो बादल ना जाने कल किसकी गुनाह पर आंसू बहा रहा होगा ।।
कब्र की कैद में जकड़े हजारों शायर, हुजूर की लिहाज में ना जाने किसका लिफाफा लिख रहा होगा
धुआं बनकर उड़ते दिनकर ना जाने कुटुंब कृष्ण से महाभारत का कौन सा गूढ़ रहस्य समझ रहा होगा ।।
संगम में सोए सूर्यकांत निराला,इलाहाबाद के पथ पर टूटते पत्थर की आवाज में मर्म ही ढ़ूंढ़ रहा होगा
इमरोज की पीठ पर सोई अमृता को, साहिर ना जाने कौन सी सूनी दुनिया में अकेले तलाश रहा होगा ।।
अरसों से बरसों तक बेबसी का ये अजीब सा आलम है ,
खुदा से रिश्ता-ए-हस्ती की फिराक में मौत ही मयस्सर मातम है ।।
खुद को आजमाउंगा मैं भी उसी रोज,जब इल्म होगा कि यही आखिरी ख्व़ाहिश है
देखूंगा नज़र से, कि कैसे सारी दुनिया उसकी लिखी हुई एक आखिरी साजिश है ।।
कातिब & कहानीबाज
रजनीश बाबा मेहता
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