लेखक,निर्देशक रजनीश बाबा मेहता |
जिस इश्क में आह ना हो ,वो इश्क बेपरवाह सा है
जिस इश्क में ख्वाब ना हो ,वो इश्क राख सा है ।।
जिस इश्क में ज़ुबान हो ,वो इश्क नाफ़रमान सा है
अगर हर इश्क की इबादत हो ,
तो फिर कयामत में भी इश्क होगा ।।
सात पैबंद से बनी दुनिया हठ सा होगा
जब बात इश्क की होगी,तो हर दरवाजा मठ सा होगा।।
खोल देना दरारों में डाल उंगलियां इश्क की
पूंछूंगा सवाल जिस्म की, थोड़ी बारिश कर देना अश्क की
दिखेगी दरारों से शक्ल शायर की, फिर भी ईश्क होगी रश्क सी।।
खुलेंगे कुछ पुराने खत ख्यालों के, धूल भरी किताबों की गांठों में
कुछ रूह सी शब्दों में एहसासों के, बंद पड़े तालों औऱ बक्सों की साठ-गांठों में।।
रोकना ना कदम जब होगी उम्र पूरी क़फ़स तले इम्तिहान-ए-इश्क की
तोड़ बंदिशो को नाप लेना जमाने के लिए बन सफेद सा नमाज़ी-ए-गुज़र सी
रमजा़न सा आउंगा अब्द सा लिबास बदन पर लिए अब्सार-ए-ईश्क सुनाउंगा
वीराने ईदगाह में कब्र के कोनों तले एक दूसरे के लिए फातिहा जो गाउंगा
तू पीर की मजार बन, मैं साधुओं की समाधि का संसार बन जिंदा जो रहूंगा
वो इश्कगाह की कब्रगाह में उम्र आंसूओं तले मोतियों सी चमकती ही बुनूंगा ।।
लो मौत की दस्तक ख़जां भी क्या खूब लाई है इश्क के तकिये तले
जिस्म में बांध जंजीर चार जणा माथे उठाए,तेरे थोड़े अश्क यूं ही मिले
फ़कीरियत का पैमाना अब ईश्क का इश्काना हठ पर भारी है
कब्र के कोठों पर खड़े वो इश्कबाज के आगे जो पूरी दुनिया हारी है
अब सोच और सपनों की सांसों से स्याही की तकदीर शब्दों में जारी है
फिक्र ना करना अज़ीम बनने की क्योंकि हर बार बेचारी इश्क ही हारी है ।
कातिब
रजनीश बाबा मेहता
क़फ़स= पिंजरा।।अब्द-परमात्मा का दास।।अब्सार= आंखें।।ख़ज़ां (ख़िज़ां)= वृद्धावस्था।।अज़ीम= महान।।
No comments:
Post a Comment