Rajnish BaBa Mehta |
लफ़्ज लाल कर दे तू
मैं जिस्म लाल कर दूंगा।।
एक पल में सोच समेट ले तू
मैं समंदर खाक कर दूंगा।।
मैं जिस्म लाल कर दूंगा।।
एक पल में सोच समेट ले तू
मैं समंदर खाक कर दूंगा।।
रूह बनकर सवेरा जो उठा है
रात बनकर आजमा ले मुझे तू
चांदनी सा मैं खड़ा, अडिग अपने पथ पर पड़ा
कर रहा वार प्रहार, घने बादल के साजिश तले तू।।
रात बनकर आजमा ले मुझे तू
चांदनी सा मैं खड़ा, अडिग अपने पथ पर पड़ा
कर रहा वार प्रहार, घने बादल के साजिश तले तू।।
छोड़ षड़यंत्रों का खेला,
खड़ा मैं रण में तेरे लिए अकेला
उठा विष, चला बाण, कर प्रहार जोर का तू
फिर भी जिस्मों के झुंड में , मुझे खड़ा अकेला पाएगा तू।
खड़ा मैं रण में तेरे लिए अकेला
उठा विष, चला बाण, कर प्रहार जोर का तू
फिर भी जिस्मों के झुंड में , मुझे खड़ा अकेला पाएगा तू।
उस वक्त माफी की गुंजाईश ना होगी
क्रोध की अग्नि में अगर मैं जला ,तो तेरे सर धड़ ना होगी।
ना कोई गीतासार सुनाएगा, ना कोई विनाश का व्यवहार समझाएगा
क्योंकि बना कृष्ण मैं, तुम्हें सिर्फ सर्वनाश का मंजर दिखाएगा।।
क्रोध की अग्नि में अगर मैं जला ,तो तेरे सर धड़ ना होगी।
ना कोई गीतासार सुनाएगा, ना कोई विनाश का व्यवहार समझाएगा
क्योंकि बना कृष्ण मैं, तुम्हें सिर्फ सर्वनाश का मंजर दिखाएगा।।
रोक ले लफ़्ज को लाल होने से तू
रोक ले विष बाण का प्रहार तू
तो फिर ना समंदर खाक होगा
तो फिर ना रूह किसी का राख होगा।।
रोक ले विष बाण का प्रहार तू
तो फिर ना समंदर खाक होगा
तो फिर ना रूह किसी का राख होगा।।
कातिब
रजनीश बाबा मेहता
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