RAJNISH BABA MEHTA |
राह की सरगोशियों की आवाज़ सुनी मैंनें
मेरी तारीफ़ के लफ़्ज़ तेरी ज़ुबान से सुनी मैंने
तेरे ज़ेहन की ज़ेहनियत को भी ख़ूब सुना मैंने
सोचता हूं कि तू ऐसा क्यूं सोचता है, जैसे नहीं सोचा मैंने।।
मैं आक़िल , तेरी गिरफ़्त से क्या निकला
तू खुद अर्ज़मन्द बन, मुझे बुरा बताकर ले लिया बदला
भूल गया तू लम्हों ही लम्हों में, बातों ही बातों में सारे फ़ैसलों को
जो बदल दिया था एक रात में तेरी राहों की हर एक मुसीबतों को ।।
तू खुद अर्ज़मन्द बन, मुझे बुरा बताकर ले लिया बदला
भूल गया तू लम्हों ही लम्हों में, बातों ही बातों में सारे फ़ैसलों को
जो बदल दिया था एक रात में तेरी राहों की हर एक मुसीबतों को ।।
ना किसी बात का गिला, ना फ़िक्रमंद होकर रहता हूं
बस तेरे शब्दों के बाण से कभी कभी चिंतित हो जाता हूं ।
इस प्रवीर पथ पर मैं बिना थके, बिना रूके चलता रहूंगा
शब्दों के आग़ोश में, आफ़ताब की रोशनी में शिखर पर बहता रहूंगा।।
बस तेरे शब्दों के बाण से कभी कभी चिंतित हो जाता हूं ।
इस प्रवीर पथ पर मैं बिना थके, बिना रूके चलता रहूंगा
शब्दों के आग़ोश में, आफ़ताब की रोशनी में शिखर पर बहता रहूंगा।।
आक़िल- बुद्धिमान ।।अर्जमन्द - महान ।। आफ़ताब - सूर्य।।
कातिब
रजनीश बाबा मेहता
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