Poet Rajnish baba mehta |
तेरे गुलिस्तें में, मैं अपना ख़्वाब रख आया
वो तकिये के नीचे तेरा पुराना खत रख आया
खोलकर पाजे़ब कभी दीवारों की दरारों में मत रखना
कारे कारे कजरारे नैनों में, काजलों का घर मत रखना
छोड़कर गुनाहों को तू, मुझ फकीर का ख्याल मत रखना
अपनी जमाल की हरारतों के तले, चांद का भी फिक्र मत करना ।।
सुना है तुझे अश्कों से पीकर, ख्वाबों-खयाल भी खूब टूटते हैं
सुना है तेरी आहटों की दीवार पर चढ़कर, बर्बादी भी खूब लुटते हैं
खबर थी खतों में, चिपके दीवारों पर, तेरे बदन की गोदनाई तराशों पर
तेरी घूंघट की दीदार को, मेले में खलिश लिए ख्वाहिश भी खूब जुटते हैं।।
खुर्शीद की रोशनी में, ख़ुर्रम आदत थी या ख़ुर्रम फितरत थी, सोचा नहीं कभी
खुद की जिस्म को भूलकर, अश्कों से खूब टकराया,लेकिन तूझे पाया नहीं कभी
ख़ाक बनकर ख़त्म की कगार पर खड़ा था, फिर भी विरह की गीत सुनाया नहीं कभी
खुश्क चेहरे की आखिरी धड़कन को सुना खूब तुमने, फिर पनाह मिली नहीं कभी ।।
मिलूंगा आखिरी पन्नें की आखिरी लाईन पर, धुंधली स्याही के साथ
बदलकर भेष ,बनकर जोगी ,मिलाएगी सांसों से सांसें, तू ज़हीर के साथ।।
कातिब
रजनीश बाबा मेहता
रजनीश बाबा मेहता
।।जमाल= सुन्दरता ।।हरारत -गरमी।।ख़लिश= पीड़ा,शंका।।ख़ुर्रम= प्रसन्न,खुश।।ख़ूर्शीद (ख़ुर्शीद)=सूर्य।।ख़ला- खाली, जगह।।ज़हीर= साथी।।
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