ज़ुबान उर्दू होनी चाहिए
और अल्फाज़ में रूहानियत।।
ज़ेहन में ख्वाबगीर सा लंबा सफर
तो शब्दों में ज़हर सा हो असर।।
तस्वीर तसव्वुर के करीब हो तो मज़ा है
वरना तेरी उम्र एक वक्त के बाद तेरे लिए सजा है।
सोच में सच्ची साज़, औऱ उम्मीदों में अच्छी आवाज़ हो
तो फिर किसी के लिए फ़क्र होगे, तो किसी के लिए नाज़ हो ।।
ज़िंदगी में नुक्कड़ ना हो, तो फिर नासमझी का सवाल नहीं
रिश्तों की समझ ना हो, तो फिर काबिल तेरा जवाब नहीं
तू सोच की समंदर लिए ,चलना मेरे साथ कभी
फिर भी रौंदा जाएगा मेरे कदमों तले, बिना आवाज़ किए कभी भी।।
सोच ले , समझ ले, मेरी रूहानियत को अभी भी
बेवक्त वक्त है तेरे पास, बना ले ज़ुबान उर्दू सी अभी भी।।
कातिब
रजनीश बाबा मेहता
रजनीश बाबा मेहता
No comments:
Post a Comment