जमाने बाद लिखा खत, मैंने आज
पुरानी गलियों के दरवाजे से बाहर निकला आज
कुछ रिश्ते पीछे छूटे , छूट गया कुछ पुराने दोस्तों का मेला
जिसके साथ खेला था, मैंने नंगे पांव ज़िंदगी का खेला।
सब्र के लिए शुक्रिया कहा औऱ आंसू लिए निकल पड़ा
चंद कदम बाद अहसास हुआ, शरीर ही तो है आत्मा थोड़ी ना निकल पड़ा ।
पहली बार लगा, मेरे शब्दों की आवाज थी नहीं आज
काश बिना बोले समझकर, मुझे शुक्रिया ही कह देते आज।।
ना कोई गिला है ना कोई शिकवा है, बस थोड़ी रिश्तों की बेबसी है
लेकिन कहीं पहुंचने के लिए ,कहीं से निकलना ,ना तेरी ना मेरी बेबसी है।
उम्मीदों की आंच पर, वादा है मेरा, दुआओं में नहीं हकीकत में होगा साथ
नए रास्ते, नई सोच, नए सपने, नई ख्वाहिशें लिए ढ़ूंढ लेंगे गोशा फिर तेरे साथ।।
।।गोशा - कोना ।।
साथ देने के लिए शुक्रिया
कातिब
रजनीश बाबा मेहता
रजनीश बाबा मेहता
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