रजनीश बाबा मेहता की कविता लाई है ....! |
लाई है …….!
रात रहनुमा चांदनी रात सी लाई है
दरकते दरारों संग दीवार लाई है
महकती आंगन के झरोखों से चौपाल लाई है
पढ़कर भूल आया मैं लेकिन किताबों की सौगात लाई है ।।
शख्स था वो चेहरों में सच की पूरी बात लाई है
जानें दो आसूंओं को बूंदों की सैलाब लाई है
छोड़ रहा हूं तेरा आंगन, कदमों की जो बात लाई है
जाने दे मुझे चौखट तले, सख्त रास्ते जो साथ लाई है।।
छोड़ा था एक पल रोशनी , जिसने अंधेरों को साथ लाई है
अब बस बानगी बची है दीवानगी की
जो पूरे पन्नों के बीच शब्दों सी ज़ज्बात लाई है ।
कातिब
रजनीश बाबा मेहता
रजनीश बाबा मेहता
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