Rajnish baba mehta |
क्रांति....
सर्द रातों की तरह, सुबह खुशनुमा निकला हूं,
बीते लम्हों की तरह, शब्दों सा नया निकला हूं ।।
बीते लम्हों की तरह, शब्दों सा नया निकला हूं ।।
छोड़ दी पुरानी सोच की तरह यादों से निकला हूं,
बंद कर दी अब मैंने, ज़ज्बातों के दरवाजों से निकला हूं ।।
बंद कर दी अब मैंने, ज़ज्बातों के दरवाजों से निकला हूं ।।
काट दिए पुराने पन्नों पर बुरे लम्हें, नई सोच के साथ निकला हूं,
कोरे कागज पर नई कलम से, खुद की नई दास्तान लिखने निकला हूं।।
कोरे कागज पर नई कलम से, खुद की नई दास्तान लिखने निकला हूं।।
शीशे की शक्ल को साफ कर, नई तस्वीर बनाने निकला हूं,
मिलना मेरे नए रास्तों में, क्योंकि सिनेमा से खुद की तकदीर बनाने निकला हूं।।
मिलना मेरे नए रास्तों में, क्योंकि सिनेमा से खुद की तकदीर बनाने निकला हूं।।
कातिब
रजनीश बाबा मेहता
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