Rajnish baba mehta poet |
रह लूंगा रहगुजर तेरे वास्ते
ये सोच लेना कभी तुम मेरे वास्ते ।
सोच की आहटों तले चल-चल
बंद कर सांसों की गरमाहट के वास्ते ।
बंद मुट्ठियों में शिकन की शिकायत ना करना
दर्द की गिरह को पकड़ ले, सूजी उंगलियों के वास्ते।
पहुंचना कभी मेरे ख्वाब की आतिश तले
आखिर में पकड़ा है कलम क़ातिब, तेरे वास्ते ।
ढ़ूंढ लेना अपना मकाम अपने बख़्त को परख के
जब भी सर उठाएगा तू, अकबर होउंगा मैं तेरे वास्ते।
मैं अज़ल ख्वाब नहीं, हकीकत हूं सबके वास्ते।
मैं अज़ल ख्वाब नहीं, हकीकत हूं सबके वास्ते।
आतिश = आग, बख्त़= सौभाग्य, भाग्य,अज़ल= अनन्तकाल,
कातिब
रजनीश बाबा मेहता
रजनीश बाबा मेहता
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