Rajnish BaBa Mehta Peom Chauranga style |
सोखती शाख़ों पर सूखे पत्ते
संदूकों में बंद रिश्तों के प्याले
जड़ ढ़ूढ़ती जोश में काले मुर्दे
स्याह सी लगती है जीवन के ये सारे परदे ।।
संदूकों में बंद रिश्तों के प्याले
जड़ ढ़ूढ़ती जोश में काले मुर्दे
स्याह सी लगती है जीवन के ये सारे परदे ।।
ढ़ोल सी बजती तो ढम से आती आवाज़ें
रेल की सीटी सी गूँजती वो सन्नाटें
बिस्तरों पर टूटती उनकी वो कराहें
प्यास लगती तो गूँजती मयखानों में वो आहें ।।
रेल की सीटी सी गूँजती वो सन्नाटें
बिस्तरों पर टूटती उनकी वो कराहें
प्यास लगती तो गूँजती मयखानों में वो आहें ।।
सुबह ढ़ूढ़ती शामों में आसरों के रास्ते
दूर खड़ी पगडंडी पर चलती वो मेरे वास्ते
पहरों की क़ब्र में कैद होकर ख़ूब बरसते
सोच की संसार में खुद से लड़ती वो मिलने को तरसते ।।
दूर खड़ी पगडंडी पर चलती वो मेरे वास्ते
पहरों की क़ब्र में कैद होकर ख़ूब बरसते
सोच की संसार में खुद से लड़ती वो मिलने को तरसते ।।
अब काग़ज़ के छोटे नावों से बचा है आसरा
गलियों में ना जाने किस बात का सन्नाटा है पसरा
लंबे वक़्त के बाद लगता है पुरी होगी लंबी ख़्वाहिश
लो आ गई झरोखों से आख़िरी वक़्त की ख़्वाहिश
गलियों में ना जाने किस बात का सन्नाटा है पसरा
लंबे वक़्त के बाद लगता है पुरी होगी लंबी ख़्वाहिश
लो आ गई झरोखों से आख़िरी वक़्त की ख़्वाहिश
चाह कर भी कोई चाह ही पाया
हिम्मत करते भी कोई हिम्मत नहीं कर पाया
क्योंकि जड़ में जड़ गई वो काले मुर्दे
अब भी स्याह सी लगती है जीवन के ये सारे परदे ।।
कातिब
हिम्मत करते भी कोई हिम्मत नहीं कर पाया
क्योंकि जड़ में जड़ गई वो काले मुर्दे
अब भी स्याह सी लगती है जीवन के ये सारे परदे ।।
कातिब
रजनीश बाबा मेहता
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