वेद में लिपटा बाबा - रजनीश बाबा मेहता |
लिखना बगावत है
मैं वाह, प्रवाह, वेग, व्यास, वेद में लिपटा हूं,
तू बन बेड़ी , मैं जंजीर बन के लिपटा हूं ।
सुबह की सूरज सी धूप सा सहमा हूं,
चंदा की रोशनी सी रात में सिमटा हूं ।।
जख्म दिया जो तूने पीठ पे
मरहम की आस में खुद से लिपटा हूं ।।
आज पलकों भर आंसू से रोया हूं
तू क्या जाने आज ख्वाब को किस कदर खोया हूं ।।
यादें संभाल कर रखूंगा इस दिल में
मरहूम सा दुबक कर ना सोउंगा मैं बिल में ।।
ख्वाब-ए-इश्क को फना भी मैं ही करूंगा
खुदा का मैं नेक बंदा फैसला भी मैं ही करूंगा।
जुबान बंद कर जो दर्द पिया वो तर्जुबा हुआ
ख्वाहिश की मंजिल तक जो मैं पहुंचा वो भी तर्जुबा हुआ ।।
मेरी किस्मत भी नाज करती है मुझपे
हर नजर को निगाह-ए-हक है मुझपे ।।
अब पहुंचा हूं जो तारीख पर
हैरान रह जाओगे मेरा मुकाम देखकर ।।
अच्छा हुआ बिखरे जमाने कब के गुजर गए
लगी जोर की ठोकर जो हम बच गए ,
बंधे थे खुद की ख्वाहिश-ए-ख्वाबगीर में
बरना कबके हम भी बिखर गए होते ।।
शुक्रिया तेरा है जो तूने खुद ही खुद का सोचा
वरना आज भी हम हीरा नहीं
तपती रेत में पत्थर की तरह बिखर गए होते ।
कातिब
रजनीश बाबा मेहता
आज दिल में कुछ रोष है और व्यक्त करने का माध्यम इससे बेहतर कुछ भी नहीं हो सकता ।
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