एक अजनबी की तलाश में चलता रहा
खामोश गलियों में तेरा इंतजार करता रहा
जहां टूटे हैं सपने...
वहां हाथों की लकीरों को देखे हैं अपने
कदमों तले रास्तों के फासलों का क्या पता
रकीबों के शहरों में अनजान बनकर चलता रहा
चांद की चांदनी तले रात रात भर
ख्वाबों की सूनी सड़कें नापता रहा
अब तो मंजिल का पता नहीं
फिर भी...
तेरी आगोश में सिमटने की ख्वाहिश से जीता रहा
ये मेरी भूल थी या तेरी आंखो की सरगोशियां
जो तेरे आंसूओं से भीगी काजल को पीता रहा
अब तो इंतजार की भी इंतहा हो गई
फिर भी
तेरी नशीली पलकों का इंतजार
बंद गलियों में किए जा रहा हूं।
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