तू ही तू
याद है तू
ख्वाब है तू
राहों की ताकीद है तू
मेरी परछाई
क्यों चले तेरे संग-संग
हर बार साए के साथ है तू ।
ज़िंदगी लम्हों में गुजरती जा रही है
फिर भी इनकार है तू
मानो हर लम्हों में हर वक्त साथ है तू ।
वों आंचल वो बाहें
तेरी छुअन मानो एक नया एहसास है तू
नजरों के सामने होकर
क्यों ओझल सी रहती है तू ।
अब तो बता क्यों खफ़ा है तू
मेरी आगोश में आकर
क्यों सिमटती जा रही है तू।
रजनीश कुमार
8 अप्रैल 2011
No comments:
Post a Comment