Sunday, June 26, 2011

यादों का बसेरा






तू ही तू









याद है तू



ख्वाब है तू



राहों की ताकीद है तू



मेरी परछाई



क्यों चले तेरे संग-संग



हर बार साए के साथ है तू ।






ज़िंदगी लम्हों में गुजरती जा रही है



फिर भी इनकार है तू



मानो हर लम्हों में हर वक्त साथ है तू ।






वों आंचल वो बाहें



तेरी छुअन मानो एक नया एहसास है तू



नजरों के सामने होकर



क्यों ओझल सी रहती है तू ।






अब तो बता क्यों खफ़ा है तू



मेरी आगोश में आकर



क्यों सिमटती जा रही है तू।






रजनीश कुमार



8 अप्रैल 2011

No comments: