Rajnish BaBa Mehta Director Fillum |
मिल के भी मुलाकात ना हो पाएगी
दिल मे जो बात थी वो जज्बात ना हो पाएगी।
गम़्माज़ों के शहर में तेरी-मेरी हमरात ना हो पाएगी
तू चल उल्टे पांव कभी सीधी गलियों में बुरक़े तले
आखिरी छोड़ पर तूझे शम्मा के अलावा आंखे ना देख पाएगी।।
उंगलियों पर आरजू गिनते-गिनते, मिलूंगा इब्तिसाम भोर से पहले- पहले
आराईश तेरे बदन की देखकर सोच लिया, ख्वाहिश होगी शाम से पहले- पहले।।
खुश हुआ गुमशुदा मेरा दिल, कि तूने अश्क को पलकों पर छोड़ वफा किया तूने
सोचज़दा की ज़द में बैठा हूं, लोग कब्र तक पहुंच जाते हैं अंजाम से पहले-पहले।
सामने ख्वाब पड़ी है,मलंगियत इश्काना का, छोड़ ना पाउंगा तूझे मौत से पहले-पहले
हौसला दिया ज़हीर बनकर रकीबों के सामने, कि मोहब्बत निभा दिया तूने
वरना लोग लहू से लाल हो जाते है, अंजाम-ए-इश्क के इन्क़िलाब से पहले- पहले
दुहाई देंगे तेरी-मेरी मजनूयत की,जिक्र होगी हर चौराहे पर इतिहास से पहले-पहले।।
लो चला मैं अब, मिल के भी मिल ना पाएंगे हम, मुलाकात से पहले-पहले
चांद लहराया गगन में, बात करके भी बात ना हो पाएगी, हमरात से पहले-पहले।।
कातिब
रजनीश बाबा मेहता
रजनीश बाबा मेहता
।।गम़्माज़= चुगलीबाज।।इब्तिसाम= मुस्कुराहट।।आराईश= सजावट।।ज़हीर- दोस्त।। रकीब- दुश्मन।।इन्क़िलाब= क्रान्ति।।
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