एक रीत सी है, एक प्रीत सी है ।
अनकही कहानी रीत सी _ रजनीश बाबा मेहता |
अँगड़ाईयों में अश्कों सी है
वो अज़ीम अफ़साना अब्त़र है ।।
शाख़ ए जिस्म में पेवस्त सी है
वो सुर्ख़ ज़ख़्म में नस्तर सी है ।।
रेंग रेंग चलती पर्वतों पर पत्थर सी है ,
टूटे आहटों के सायों का चलना बदस्तर है ।।
फ़िरदौस की फ़ांका में बाबा, फ़रिश्तों से मिल आया
किताब के कोरे पन्नों पर, तेरे लिए पूरा नज़्म लिख आय़ा ।
अब तक हर राह रूमानी थी, हर ख़्वाब बेमानी थी,
अब तो तेरा रिश्ता , बिस्तर के कोनों के जैसी ज़िस्मानी थी।।
वो रात की पूरी बारिश रूह सी रूहानी थी
खुली आँखों से लगती वो एक अनकही कहानी थी ।।
कातिब
रजनीश बाबा मेहता
अज़ीम- महान, अफ़साना- कहानी अब्त़र - नष्ट, बिखरा हुआ, फ़िरदौस- स्वर्ग, फ़ांका- भूखा,
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