Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta |
उस भाव की भाषा क्या, जिसकी कोई परिभाषा ना हो,
वो एहसास ही क्या, जिसकी रूहानी दिलों में जिज्ञासा ना हो।
हर दरवाजे पर खड़ा वो रूमी क्या, जो लबों से प्यासा ना हो,
शम्स की ही बात वो क्यूं करें, जिसकी हसरतों में आशा ना हो।।
ना पूरब, ना ही पश्चिम, वो तो राहों पर गिरता जैसे टूटा गागर हो,
कैस की कब्र से छूटा, लाल लहू में लिपटा मानो सूखा सागर हो।
खत्म हुई तलब यार की, फिर भी दिखता जैसे जन्नत का जादूगर हो,
अब तो रेत पर रोती बिन आंसू लैला ,जैसे एक बूंद में पूरा महासागर हो।
छोटी कदमों तले नाचती दुनिया, जैसे हर दस्तक का दर रूठ गया,
बंद सांकल में बैठा रूमी, मानों हर लफ़्ज की लकीरें टूट गया।।
आदती इबादत की फिराक में, वो खुदा-ए-शरीफ का रास्ता छूट गया,
मर्सिया मोहब्बत का गाते-गाते, मजनूं ही दुनिया से रूठ गया ।।
हिज़्र का बेनिशान लिए खत्म हुई खामोश भाव की भाषा,
गुज़र रहे ज़माने लम्हों की तरह, जहां बची ना इश्क की कोई परिभाषा।।
दर्द के हर दरख्त से बहता दरिया, फिर भी रूमी भटक रहा प्यासा,
अब रूह की बात रूह से होगी, फिर भी हसरतों में बचेगी ना कोई आशा।।
कहानीबाज
रजनीश बाबा मेहता
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