Writer & Director कहानीबाज Rajnish BaBa Mehta |
अरसा गुज़र गया, मगर ज़िंदगी का कोई फलसफ़ा नजर ही नहीं आया,
बरसों बाद वक्त ने ली ऐसी करवट, जहां जुगनू भी मुर्दा ही नजर आया।।
सुनसान सड़कों पर बेपरवाह वीरानियां कुछ खुसफुसा कर बतिया रही है
ये क्या,घऱों में बंद ज़िंदा जिस्म,मगर राहों पर हवाओं की साजिश ही नजर आया।।
सन्नाटाओं की इबादत आसान नहीं,फिर भी हर कोई सजदा ही करता नजर आया,
बंद जुबां लिए दस्तरखान में बैठा है, फिर भी सूनी आंखों से चीखता ही नजर आया।।
बेबसी की बारात जो निकली , उस रात हर जेब से पुरानी दरख्वास्त जो निकली ,
ना धर्म पूछा ना जात पूछी ,बस हिज़ाबों तले दुआओं की चौखट पर रेंगता ही नजर आया।।
चार कंधों पर चलने वाली जिंदगी आराम जो करने लगी, ना जाने क्यों वो जागता नजर आया,
मिट्टी में, पानी में, धूप में, ध्यान में, मौत गर्द सी जमी है फिर भी जिंदगी ही क्यूं नजर आया।।
भागती भीड़ में गुम सा गया था, उड़ती ख्वाहिशों में खो गया था,मगर जिंदा रहने का डर दे गया,
लौट रहा हूं बरसों बाद सांझ-संकारे,देर हुई,मगर खुली आंखें तो घर का सांकल ही नजर आया।।
अंधेरी गलियों के अहाते तले सूने सब्र को समेट कर, आज हर कोई भीड़ से अकेला ही लौटता नजर आया,
ज़माने को शौक से सुनते-सुनते उमर गुजर गई,लेकिन पहली बार आज अपनी आवाज सुनता नजर आया।।
कैद-ए-हयात मुकम्मल हुआ तो रोशनी गई, मगर उमर के दरवाजे तले वो अकेला ही लड़ता नजर आया,
कौन कहता है कि मौत आएगी तो मर जाएगा, वो तो बस सोते-सोते परियों की कहानी सुनता ही नजर आया।।
कहानीबाज
रजनीश बाबा मेहता
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