POET, WRITER, DIRECTOR RAJNISH BaBa MEHTA |
गुजारिश गुलजार की है, बेबसी के सहारे
मकबरों की मातम में है, रानी बादलों के सहारे ।।
गुजरी सदियां, गौहर की बातें अब यादों के किनारे ।
इश्तियाक़-ए-इश्क़ की फ़िराक में अब फिरदौस भी,
फ़सानों सी वो नदिया रेत सी बनकर, चांद को रोज पुकारे ।।
रात की रंजिश बनकर शाम वाली मोहब्बत, ख़्वाब से यूं कह दे
बंद कर आंखें ,अब तेरे क़सीदें में, हम खाक बनकर ही रह लें ।
हर गिरहों को खोल, दरवाजे पर खड़ी होकर रात से ही कह दे।
काफिला बेनसीब बनकर, तेरे साहिल से प्यासे गुजर जाते हैं
किसी रोज झूठे लफ्जों की बारिश पर, अपनी बदन की सारी बिसात ही रख दे ।।
खुदमस्ती की ख़ातिर अब राख भी है , आखिरी साख के सहारे
धड़कती नब्जों में आखिरी इश्क पेवस्त है, लहू वाली आग के किनारे ।।
रोक ना पाया, तेरे जनाजे की जागीर को, फिर भी घूंघट से तूझे ही पुकारे।
कुछ कदमों की बात है, सुलगती गाह वाली बारगाह से अब मुलाकात है
लो अब जला है ज़र्द जिस्म, नंगी रूह लिए, नदियां रावी-चेनाब के किनारे ।।
लौट रहा हूं सूरत-ए-सांस भरकर , जाओ कोई उसकी गलियों के मुहाने से कह दे
मिलूंगा उस रोज जब शक होगी सांसों पर, जाओ ये बात कोई फरिश्तों से कह दे ।
बीरान मकबरे पर अब रोती है रानियां , ये बात कोई महलों वाले फकीरों से कह दे
रूकूंगा ना मेलों में अब मातम मनाने, रूकूंगा ना हरे दुपट्टे का शामियाना बनाने
अब मेरा बसेरा तेरे शहर के किनारे पर होगा, जाओ ये बात कोई उसके कब्र से कह दे। ।
कातिब & कहानीबाज
रजनीश बाबा मेहता
इश्तियाक़= चाह, इच्छा, लालसा ।। फ़िरदौस= स्वर्ग, उपवन ।।
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