रिश्तों की परवाह नहीं की उसने ।
मांगा था एक पल दुआओं में,
इबादत की परवाह नहीं की उसने ।।
खुद की सोच को समेटकर दे दिया लम्हों में,
इंसान होकर भी इंसानियत की परवाह नहीं की उसने ।
वक्त को बंद डब्बे में रखकर भूल आया ,
फिर भी मेरी सोच को शीशे सा पिघला दिया उसने ।
हार नहीं हिम्मत है ये मेरी,
क्योंकि मेरे जैसा, जर्रे से मोती बनना,
सीखा नहीं उसने ।।
कातिब
रजनीश बाबा मेहता
No comments:
Post a Comment