Sunday, June 23, 2013

क्यों काजल हैं बिखरे तेरे



क्यों काजल हैं बिखरे तेरे....
  क्यों शहर है सिमटा

हर कोने बिखरी ढ़ेरों गुड़िया 
रिसती है काले आंसू 
रिसते है तेरे सपने 

क्यों काजल हैं बिखरे तेरे....
  क्यों शहर है सिमटा

खोल ले आंखें अपनी 
देख ले बिखरे बिखरे बादल को 
धुंध छटेगी, प्यास मिटेगी 
फिर भी ना होगा सवेरा 
क्योंकि ये अंधेरों की है दुनिया 

क्यों काजल हैं बिखरे तेरे....
  क्यों शहर है सिमटा


कातिब(लेखक) 
रजनीश बाबा मेहता 

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