तमन्नाएं होश की है, जो राहों में हौसलें अब यूं ही गिरवी हुई ।।
हर पल हार का ज़िक्र है, मगर ज़ेहन में जीत अब भी सिमटी हुई,
वक्त की है थोड़ी आजमाईश, जो आराईश कहानियों पर टिकी हुई ।।
सांझ की कोलाहल तले बिखरती ज्योति ना जाने अब क्यूं घनी हुई,
काले घुमड़ते बादलों के बीच छोटे तारों जैसी ना जाने सोच अब भी क्यूं फंसी हुई।।
मांझी के पतवारों के बीच निर्जन सागर की कोलाहल तले क्यूं खड़ी हुई
चित्र-पट की माया पर सोचता हूं, ना जाने क्यूं मेरा सत्य सफर में उलझी हुई।।
भोर वाली सवेरा हुई जागो जीवन के प्रभात हिमनद पर खड़ा हूं मैं
खो गया था विश्वास, लौट आया जीवन का श्वास जो दीवारों पर टिका हूं मैं ।।
अब हर पल्लव पुलकित होंगे, आशा मेरे अंकुरित होकर जो झूमेंगे
देख लेना माली, हर उपवन की क्षितिज पर अब कोई ख्वाब ना टूटेंगे।।
कसक कूक सी उठेगी, जो काली आंखों वाली अंधकार पर होगा वार -प्रहार
मद चेतना जागेगी , मधुर व्यथा लिए शून्य चीर पर बनाएगी अपना आकार।।
सपनों के बादल फिर बुनेंगे जो मिलेगी रात के अंधियारों तले कहानीबाजी का दुलार
हर हौसलों तले अबस जीत का जश्न होगा, हारेगी ना हिम्मत अब कभी तरल हार।।
कातिब कहानीबाज & सिनेमाई साधू
रजनीश बाबा मेहता
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