Writer, Director & Poet Rajnish BaBa Mehta |
हाथ में सारंगी, जिस्म पर नारंगी
सतरंगी दुनिया में साधु ,ज़ेहन से पूरी नंगी
फैसला था खुद का, फासलों का डर नहीं
नाचती मौत के सामने, खड़ा सबसे बड़ा भंगी।
नादान बन राह नापता, बन हिमालय का सतसंगी
भोर होता जटा समेटता, फिर कहलाता मैं तेरा मलंगी
राह चली जोगन मेरे साथ, कहती वो, तू शिव,मैं तेरी शिवांगी
पहुंचा कैलाश, रख सारंगी, तूझे सुनने तो आतुर है, ये केसरिया बजरंगी
बजा है डमरू, लगी है तान,
गूंज उठा मानसरोवर का अभिमान।
मैं शिव हूं, या शव हूं, तेरे सोच की मुक्ति हूं
नीले बदन तले तेरे संसार में, एक ही शक्ति हूं
राख वाले लिबास ओढ़े सुन, मैं ही तेरी भक्ति हूं
तू बजा शंख, दे अजान, रह गया आखिर तक तू अनजान
बंद आंखों से अब देख जरा, शमशान की आखिरी छोड़ पर खड़ा
मैं ही तेरी भक्ति हूं, मैं ही तेरी शक्ति हूं, मैं हीं तेरी मुक्ति हूं।
कातिब
रजनीश बाबा मेहता
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