साधु, मतलब सच्चा।
औऱ नागा साधु ?
कौन होते हैं ये लोग ?
औऱ कुंभ मेले में स्नान के बाद कहां गायब हो जाते हैं ?
एक अनसुलझी, एक अबूझ पहेली।
निर्वस्त्र-निर्गुण, मदमस्त फ़कीर।
मोहपाश हो, या हो माया
बांध ना पाई कोई लकीर।
कांधे टांग कमंडल, धूनी रमाए
हाथ बांधे त्रिशूल, गंगा की हर बूंद में समाए।
ब्रम्हकुंड पर खड़ा,राख में लिपटा
वो मदमस्त नागा साधु खुद में सिमटा।।
कांधे टांग कमंडल,धूनी रमाए
मस्तक पर केसरिया, लिए हाथ में चिमटा।।
अज़ीब है साधु की दास्तान लेकिन
पूरी दुनिया से कहता है साधु,
जो चाहोगे सो बन जाओगे
जिस दिन थोड़ा भी साधु हो जाओगे।।
कहानीबाज़
रजनीश बाबा मेहता